कुछ किताबें, कॉपी, कुछ पेन और पेंसिलें ही नहीं… कुछ झिड़कियाँ, कुछ फ़ब्तियाँ… कुछ व्यंग्य और कुछ परिहास भी कुछ…
नशा ‘पुड़िया है क्या, यार?’ ‘अबे, थोड़ा माल दे…’ कॉलेज में पीछे के ग्राउंड में कोने की चाय की…
एक समय था, जब हम अपनी टीचर्स से पूछते "सब सही तो लिखा है, नम्बर क्यों काटे?"और जवाब मिलता था,…
6 मई – माँ के जन्मदिन पर उनकी यादों का एक झरोखा… एक और रविवार!पिछले दो रविवार की तरह इस…
कटी-फटी तस्वीरों के टुकड़ों सी ज़िन्दगी टुकड़ों में ही बँटी रह गयी। हर टुकड़े में तार-तार सी… हर टुकड़े में…
Allahabad University Alumni Association की वार्षिक मैगज़ीन "धरोहर" में इस वर्ष के अंक में मेरी भी एक कहानी…मोहे रंग द……