माँ – नवरात्रि पर विशेष

माँ – नवरात्रि पर विशेष

उस नन्हीं सी बच्ची को गोद में लेकर मीरा बिलख पड़ी। “अब इस छोटी सी बच्ची का क्या अपराध, जो उसे ये सज़ा मिली? वह तो अभी दुनिया को देख भी नहीं सकी, और उसे ऐसी भयंकर बीमारी ने जकड़ लिया! ऐसा ही होना था तो उसे जन्म ही क्यों दिया? क्या ईश्वर कहीं है? यदि है, तो उसने इस नन्ही सी जान को ऐसी सज़ा क्यों दी? क्या ये मेरे गुनाहों की सज़ा है, जो इस नन्ही सी बच्ची को मिली? लेकिन सज़ा ही देनी थी तो सीधे मुझे देते, ईश्वर, इस अबोध को माध्यम बनाने की क्या ज़रुरत थी?”

मीरा सुबकती जा रही थी। उन अनगिनत सवालों का उसके पास कोई जवाब न था। यहाँ तक कि इस बात का भी नहीं कि वो बच्ची कभी ठीक हो सकेगी या नहीं। वह आम लोगों की तरह ज़िन्दगी जी सकेगी या नहीं। वह कितने साल जी सकेगी... या फिर कितने महीने... या दिन?

उसके सवाल उसे और भी अधिक डरा रहे थे। बच्ची को कसकर थामे मीरा अपने आँसुओं से उसे भी भिगोती रही। ‘इससे तो अच्छा, इसे अभी ही मार देते, भगवान्! ज़िन्दगी में आगे आने वाली कठिनाइयों से तो बच जाएगी। हम भी कुछ दिन रोकर फिर जी लेंगे। लेकिन इसे यूँ बेबस देखते हुए पल-पल तो नहीं मरना होगा... हाँ! यही ठीक होगा! इसे ठीक नहीं कर सकते तो इसे मार ही देना बेहतर...’ मीरा का दिल कठोर होता जा रहा था। विचार करके वह चल दी माँ के सामने...

माँ की विशाल मूर्ति सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी।

‘तू भी तो माँ है! मेरा दर्द तू नहीं समझ सकती, तो कौन समझेगा? तू मेरा दर्द नहीं समझ सकती, तो बता, मैं कैसे तेरा न्याय समझूँ? इसे पल-पल मरते नहीं देख सकती, माँ! इसे ठीक नहीं कर सकती, तो ले... अब ये तुझे ही समर्पित है,’ कहते हुए मीरा ने तीन माह की अपनी बच्ची को माँ की मूर्ति के आगे कर दिया।

अभी वह उसे वहाँ छोड़कर जा पाती कि उस नन्ही सी जान ने कसकर अपनी माँ की उँगली पकड़ ली। मीरा चौंककर उसे देखने लगी। उस मासूम मुस्कराहट को देख एक बार फिर उसे गले से लगाकर फफककर रो पड़ी। वह ही तो अब उसके जीने की आस थी। कब तक जियेगी, कब तक नहीं, पता नहीं, लेकिन वह ही उसकी मुस्कान थी!

एक बार फिर माँ की मूर्ति की ओर देखा। वो अब भी मुस्कुरा रही थी...

माँ है, वो अपने बच्चों को ताक़त दे ही देती है... ज़िन्दगी की हर चुनौतियों से लड़ने की!

जीवन में पग-पग चुनौतियाँ हैं... और उन्हीं चुनौतियों के बीच पग-पग पर अनोखी खुशियाँ हैं... जाने कितने और कैसे-कैसे रूप में!

जीवन सचमुच रहस्य है... कहीं आँसुओं में लिपटा हुआ तो कहीं छोटी-छोटी खुशियों में दबा-दबा सा!

 

शुभ नवरात्रि!