युवा होते मन को अक्सर नशे की लत लग जाती है। कुछ तो अपने दोस्तों, संगी-साथियों के साथ नशे की गिरफ़्त में फंस जाते हैं, कुछ गम का बहाना करके, तो कुछ अपने आसपास अपने से बड़ी उम्र के लोगों से प्रभावित होकर नशा करने लगते हैं।
समाज में अच्छे ओहदों पर आसीन, सफल, सुखी और समृद्ध दिखने वाले लोगों की जीवनशैली अधिकतर युवाओं को बहुत प्रभावित करती है। ऐसे में पब्लिक में ये सफल व्यक्ति कैसे आचरण करते हैं, इसका युवा मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि ये युवा अपने आसपास किसी सफल और प्रतिष्ठित व्यक्ति को सिगरेट, शराब आदि का सेवन करते देखते हैं तो वे इसी विश्वास में जीने लगते हैं कि सोसायटी में प्रभावशाली और आकर्षक दिखने के लिए नशा करना बहुत ज़रूरी है। परिपक्व व्यक्ति के द्वारा नियंत्रित ढंग से ली जाने वाली अल्कोहल की नकल करने में अधिकतर अपरिपक्व मन नशे की गिरफ़्त में फँस जाते हैं। उनकी कूल स्टायल की नक़ल में ये युवा अपनी ज़िन्दगी दाँव पर ही लगा देते हैं।
सिगरेट के कश और व्हिस्की के पेग से शुरू होकर ये नशा कई बार नशे की हद तक पहुँच जाता है, और कभी-कभी हुक्का, गांजा, भाँग और ड्रग्स तक भी पहुँच जाता है। नशे की शुरुआत भले ही छोटे-मोटे बहानों से होती है, लेकिन अधिकतर हालातों में युवाओं के साथ यह समस्या गंभीर रूप भी धारण कर लेती है। वे कब नशे की गिरफ़्त में फँस जाते हैं, इसका होश आये, इससे पहले ही वे होश खो बैठते हैं।
नशे की शुरुआत अधिकतर छोटे-मोटे बहानों से होती है, जिनसे कोई भी विवेकपूर्ण व्यक्ति आसानी से बच सकता है... जैसे, दोस्तों ने ज़बर्दस्ती की तो नशा करने लगे, साथ देने के लिए नशा कर लिया, दोस्तों को मना नहीं कर सके, प्यार में धोखा, दिल टूट गया... वगैरह, वगैरह।
ये बहाना तब और भी बड़ा हो जाता है, जब युवावस्था की कुंठा को, छोटी-मोटी समस्याओं को युवक-युवतियाँ ज़िन्दगी का सबसे बड़ा टेंशन समझ लेते हैं। जैसे-जैसे ज़िन्दगी उनके सामने चुनौतियाँ रखती है, वैसे-वैसे ये युवक-युवतियाँ नशे की गिरफ़्त में और भी अधिक फंसते चले जाते हैं।
विवेक खो देते हैं, इसलिए ध्यान ही नहीं दे पाते कि समस्याएँ तो हर किसी के जीवन में हैं! जीवन का तो दूसरा नाम ही संघर्ष है।
नशा करने वाले सबसे बड़ा सच नज़रअंदाज़ ही कर देते हैं...
भले ही नशे की धुन में हम कुछ पलों के लिए अपने टेंशन भुला दें, लेकिन इससे हमारी समस्याएँ सुलझ नहीं जायेंगी। वे तो ज्यों की त्यों ही रहेंगी।
नशा हमारी किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकता।
ज़रा विचार करें... किसी भी समस्या का समाधान समय पर नहीं करने से, उसे टालते रहने से समस्या बढ़ती ही है। ऐसे में, यदि हम लगातार होश खोते रहेंगे, तो पिछली समस्याएँ और भी गंभीर रूप ले सकती हैं।
साथ ही, एक नयी समस्या हमारे सामने खड़ी हो जाती है - नशे की लत! जो किसी भी दूसरी समस्या से कहीं अधिक विकट होती है।
लीजिये, कहाँ तो हम एक परेशानी से भागने की कोशिश कर रहे थे, और कहाँ एक नयी और अधिक गंभीर परेशानी खुद ही मोल ले बैठे!
अधिकतर युवाओं का खर्च माता-पिता से मिली पॉकेट मनी से चलता है। नशे की आदत पूरी करने के लिए कोई माता-पिता अपने बच्चों की पॉकेट मनी तो बढ़ा नहीं देंगे। तो लीजिये, पैसे की कमी की परेशानी आपको दूसरी हरेक परेशानी के साथ बोनस में मिल गयी!
क्या आप स्थिति पर विचार कर सकते हैं?
कहाँ तो हम कूल बनने चले थे, या फिर अपनी समस्याओं से बचने की कोशिश कर रहे थे, और कहाँ एक नहीं, दो-दो अधिक गंभीर समस्याओं को न्योता दे बैठे।
ज़रूरी नहीं कि ज़िन्दगी में सारे अनुभव हम खुद ही लें। बहुत कुछ हमें दूसरों के अनुभवों से भी सीखना होता है। और, दूसरों के अनुभव से यही समझ में आता है कि नशे की लत आसानी से नहीं छूटती। इसके लिए बहुत अधिक मानसिक बल की ज़रुरत होती है।
अब जबकि हमारा मानसिक बल पहले ही इतना कमज़ोर था कि हम अपनी ज़िन्दगी की परेशानियों से भागने के लिए नशे का सहारा ले बैठे, तो नशे की गिरफ़्त में आने के बाद तो हमारा मनोबल और भी अधिक कमज़ोर हो जायेगा। ऐसे कमज़ोर मनोबल के साथ हम अपनी पुरानी समस्या सुलझाएंगे, या नशे से मुक्ति पायेंगे?
विवेक पूर्ण ढंग से सोचिये, तो सबकुछ स्पष्ट समझ में आता है। लेकिन कितने लोग विवेक पूर्ण ढंग से सोचना चाहते हैं?
सच है कि युवा मन बहकना चाहता है, उड़ना चाहता है, दुनिया के सारे गम, दुःख-दर्द भुला कर बस अपनी ही दुनिया में खोया रहना चाहता है... लेकिन इस बहकती, उड़ती, खोयी-खोयी सी ज़िन्दगी के साथ हम कितनी दूर जा सकते हैं?
नशे में डगमगाते हमारे कदम क्या हमें सफलता की किसी ऊँचाई तक पहुँचा सकेंगे? या, लड़खड़ाते हुए बस रास्ते में ही गिरा देंगे?
फ़ैसला हमारा है। आखिर ज़िन्दगी भी हमारी ही है।
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