बस विवाद?
कभी-कभी महसूस होता है जैसे कुछ लोग केवल विवाद खड़े करने के लिए और फिर उन्हीं विवादों के सहारे ही अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए जीते हैं। ऐसा ही एक विवाद दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज का नाम आते ही मन को घेरता है।
दयाल सिंह कॉलेज के चेयरमैन पर आरोप है कि उन्होंने कॉलेज के संस्थापक का नाम हटाकर कॉलेज का नया नामकरण कर दिया, ‘वन्दे मातरम् कॉलेज’!
जानकर आक्रोश तो बहुत होता है... सच है कि हम राष्ट्रवादी लोग हैं, अपने देश से बहुत प्यार करते हैं, और किसी भी राष्ट्रभक्त की तरह ‘वन्दे मातरम्’ का आह्वान हमारी राष्ट्रभक्ति की चेतना को और भी अधिक प्रबल कर देता है।
लेकिन, यह भी सच है कि जैसे ‘वन्दे मातरम्’ के प्रति हमारा भावनात्मक जुड़ाव है, उसी तरह भावनात्मक जुड़ाव किसी संस्था के संस्थापक के साथ उस संस्था से जुड़े लोगों का भी होता है। वन्दे मातरम् कॉलेज का नाम नहीं होगा फिर भी लोगों के मन में ‘वन्दे मातरम्’ की गूँज बसी रहेगी... लेकिन एक संस्था उसके संस्थापक के लिए उसकी संतान की तरह होती है।
आज जब शिक्षा जगत मोटी आमदनी देने वाला बड़ा व्यवसाय बन गया है तो इस भावना को समझना थोड़ा कठिन हो सकता है, लेकिन उस दौर में शिक्षण संस्थानों की कमी को महसूस करके देश के अनेक महापुरुषों ने न जाने कितनी मेहनत, कितनी मुश्किलों का सामना करके, कितनी कोशिशों के बाद इस तरह की अनेक संस्थाओं की स्थापना की। उन्हें और समाज में उनके अनमोल योगदान को याद रखने का एकमात्र माध्यम वह संस्था ही होती है। संस्थापक के नाम पर संस्था का नामकरण करके संस्थापक को उसके अमूल्य योगदान के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की जा सकती है।
कहा जा सकता है कि यदि संस्थापक का नाम संस्था से हटा देंगे तो संस्थापक का योगदान क्या, उनका नाम, उनकी सारी यादें भविष्य की गर्त में धुंधली पड़ने लगेंगी। संस्थापक के लिए तो संस्था ही उनकी अतुलनीय निधि है!
इसलिए नाम बदलने की स्थिति में मन में आक्रोश उपजना स्वाभाविक ही है।
किन्तु यह आक्रोश तभी तक प्रबल रहता है, जब तक हमारी जानकारी अधूरी रहती है।
मालूम नहीं कि विवाद उपजाने वालों का कोई राजनीतिक हित सध रहा है, या फिर उनकी जानकारी अधूरी है, या खुद मेरी जानकारी अधूरी है? हम सभी ने अपने आसपास देखा है कि स्कूल-कॉलेज के भवन में स्थान की कमी होने के कारण विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने पर एक ईवनिंग विंग भी खोल देना हमारे यहाँ प्रचलन में रहा है। ऐसा ही कुछ इस कॉलेज के साथ भी हुआ।
दयाल सिंह कॉलेज के भवन में दो कॉलेज अलग-अलग समय पर चलते थे, ‘दयाल सिंह मॉर्निंग कॉलेज’ और ‘दयाल सिंह ईवनिंग कॉलेज’। हाल ही में कॉलेज में नए भवन का निर्माण हुआ और अब ईवनिंग कॉलेज को भी सुबह के समय ही चलाया जाना संभव हो गया। अब एक ही समय में एक ही कैम्पस में दो-दो कॉलेज चल रहे हैं- दयाल सिंह मॉर्निंग, और दयाल सिंह ईवनिंग- जो अब ईवनिंग न रहकर मॉर्निंग बन गया है। यानी दो-दो 'दयाल सिंह मॉर्निंग'!
कुछ तकनीकी और क़ानूनी कारणों से एक ही कैम्पस में एक नाम से दो कॉलेज नहीं चल सकते। यूजीसी की ग्रांट मिलने में भी कॉलेज को कुछ तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए कॉलेज प्रबन्धन ने दोनों कॉलेज के नाम में कुछ अंतर रखने का निर्णय लिया, और जल्दी ही एक का नाम था- ‘दयाल सिंह कॉलेज’ और दूसरे का नाम हो गया- ‘वन्दे मातरम् दयाल सिंह कॉलेज’।
स्पष्ट है कि संस्थापक का नाम किसी भी संस्था के नाम से हटाया नहीं गया है।
फिर, यह विवाद किसने उठाया कि कॉलेज के नाम से उसके संस्थापक का नाम हटा दिया गया?
समझना कठिन है कि यह विवाद जानकारी के अभाव में उठाया गया है, या फिर कुछ राजनीतिक लाभ लेने की नीयत से ऐसा किया गया है!
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दयाल सिंह कॉलेज - नाम विवादअक्सर ऐसा होता है, कि समाचारों में हम जो देखते और जानते हैं, वह कुछ और होता है, जबकि...
Posted by Garima Sanjay on Friday, May 4, 2018
A very perfect analysis..Truth is not highlighted in media.