आज कुछ स्कूल की यादों से...
बचपन के दोस्त... कभी-कभी बड़े होने तक बहुत दूर चले जाते हैं
जैसा हमारे साथ हुआ
बरसों बाद कभी-कभी वो वापस मिल जाते हैं...
जैसा हमारे साथ हुआ
और वापस ले आते हैं फिर से वो बचपना...
कॉपी-किताबों के बीच पनपती वो गहरी दोस्ती
बचकाने खेलों की कुछ धुंधली सी, कुछ स्पष्ट सी यादें...
वो बैग रखकर जगह रोकने की कोशिशें
और टिफ़िन के लिए झगड़ते लंच टाइम!
स्कूल के अन्दर बंसी की आइसक्रीम और
बाहर रामआधार का चुरमुरा...
पच्चीस पैसे में एक... ऊपर से मूँगफली के दाने एक्स्ट्रा!
वो बॉलीबॉल वो बेडमिन्टन और बास्केटबॉल...
और बस का इंतज़ार करते समय कभी हॉपिंग
तो कभी फ़िल्मी गॉसिप! (हाहाहा)
वो फ़्री पीरियड की मस्ती
जो कभी चुटकुलों तो कभी गीत-संगीत से सजती!
और कभी खुलता हमारा चैटर बॉक्स
फिर तो पड़ती टीचर्स की ज़ोरदार डांट!
और कभी-कभी जूनियर क्लास के सामने सारा दिन खड़े रहने की सज़ा
लंच टाइम में हमारा भूखा रहना और
जूनियर-सीनियर्स सबका हमपर हँसना!
स्कूल छूटने के साथ ही वो सब छूट गया
लेकिन फिर देखो, कैसे बरसों बाद मिल गया!
एक बार फिर से व्हाट्सऐप ग्रुप में स्कूल सज गया
कितने भी बड़े हो गए हों, लगता है जैसे बचपना फिर से मिल गया!
- गरिमा संजय