यद्यपि मन में थोड़ी उलझन रहती है कि जनवरी 2020 में प्रकाशित उपन्यास “ख़्वाहिशें अपनी-अपनी” के बाद से कोई नई रचना प्रकाशित नहीं हो सकी है, लेकिन ‘स्वान्तः-सुखाय’ न सही, ‘परांतः-सुखाय’ में भी ‘स्वान्तः-सुखाय’ का रस मिलता रहता है।
आजकल चर्चा में है – राष्ट्रपति भवन के नार्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक को मिलाकर भारत में विश्व के सबसे विशाल संग्रहालय – “युगे-युगीन भारत” का निर्माण किए जाने की योजना है।
बीते 18 मई को म्यूज़ियम एक्सपो के शुभारंभ के अवसर आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस भावी संग्रहालय की लॉंच वीडियो का भी शुभारंभ किया था।
साझा करते हुए हर्ष हो रहा है कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और विशाल इतिहास के अगाध विषय को सात मिनट में बाँधकर इस वॉकथ्रू वीडियो को बनाने के लिए, प्राचीन भारतीय ज्ञान से लेकर भारत के अमृत काल का वर्णन करने का सौभाग्य मुझे मिला!
इस वीडियो के माध्यम से पूरे संग्रहालय के विषयों को दो भवनों के आठ खंडों में सुसज्जित किया है –
प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा एवं वैभवशाली इतिहास जिसमें सिंधु-सरस्वती सभ्यता से लेकर विविध क्षेत्रों में प्राचीन भारतीय ज्ञान सम्मिलित हैं, ऐतिहासिक धरोहर के अन्तर्गत प्राचीन शासन व्यवस्थाएँ – जिनमें मौर्य साम्राज्य से लेकर दक्षिण में पल्लव, चोल और कश्मीर के शासकों का क्रमवार वर्णन है, मध्य-युगीन भारत में राजपूत, मुग़ल ही नहीं, उत्तर-भारत के अहोम शासकों से लेकर दक्षिण के विजयनगर आदि सम्मिलित हैं, और फिर स्वतंत्रता संग्राम की गाथा से लेकर भारत नव-निर्माण से होते हुए अमृत-काल तक भारत के चहुँमुखी विकास के प्रति समर्पित पूरे राष्ट्र की प्रतिबद्धता एवं संकल्प का वर्णन करते हुए ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ निर्माण की संपूर्ण गाथा को समेटने का प्रयास किया है।
प्रस्तुत हैं, इस पूरी गाथा की कुछ पंक्तियाँ जो मेरे हृदय के अधिक निकट हैं –
कुछ आरंभिक पंक्तियाँ –
* क्या आप जानते हैं युगों पहले हमारे पूर्वजों को मिश्रित धातु के निर्माण का ज्ञान था?
प्राचीन भारत के धातु-विज्ञान के ज्ञान के प्रतीक रूप, ऐसे ही एक द्वार से प्रवेश करके आरंभ करते हैं भारत-खंड की अभूतपूर्व यात्रा…
* आश्चर्य होता है कि युगों पहले भारत में सुनियोजित नगर व्यवस्था विकसित हो चुकी थी!
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं, सिंधु-सरस्वती सभ्यता की…
* क्या कभी सोचा कि क्यों भारत में पर्वतों, समुद्रों, नदियों, और पेड़ों की पूजा होती रही है?
क्योंकि हज़ारों साल पहले भी हमारे विद्वान जानते थे कि जिन पञ्च-तत्त्वों से सृष्टि का निर्माण हुआ, उन्हीं से सभी प्राणियों की रचना हुई!
* बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत में लोकतंत्र की अवधारणा कोई नई बात नहीं
इसका वर्णन ऋग्वेद में ही मिलता है। यही नहीं, राजतंत्रों में भी लोकतांत्रिक नियमों का पालन होता था!
* शून्य की अवधारणा का आविष्कार करने वाला भारत न केवल गणित और ज्योतिष में, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान में भी पारंगत था!
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और अंत में प्रस्तुत किया है, वर्तमान एवं भविष्य से जुड़े कुछ प्रयासों की झलकियाँ –
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“… सच है कि स्वतंत्र भारत के आगे अनेक आर्थिक, सामाजिक चुनौतियाँ थीं।
हर चुनौती को पार करने, सशक्त राष्ट्र का निर्माण करने, स्वतंत्र भारत ने फिर से राष्ट्र को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया
विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आधुनिक भारत नई ऊँचाइयाँ छू रहा
नई दिशाओं में नव-प्रयोगों से नए आयाम तय कर रहा
राष्ट्र को सुरक्षित बनाने के नित नए प्रयास सतत जारी हैं
रक्षा के क्षेत्र में भी भारत आत्मनिर्भर बन रहा
सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश जिसने युगों से दिया है
वह भारत विश्व को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहा
अंतरिक्ष-विज्ञान में ऊँची उड़ान,
दिन-प्रतिदिन बढ़ता डिजिटल संसार,
चिकित्सा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान, दिनोंदिन होता आर्थिक, व्यापारिक विस्तार,
शिक्षा का उत्थान, प्रसार इस ज़ोन के अन्य कक्षों में क्रमशः संकलित हैं…”
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…सच है कि ही आज भी कॉर्पोरेट संसार के साथ बहुत से सरकारी कामकाज भी अंग्रेज़ी में होते हैं, फिर भी एक अच्छी बात है कि अक्सर इस तरह की प्रस्तुतियाँ हिंदी में होती हैं।