"आतंक के साए में"
-उपन्यास (गरिमा संजय)
वर्ष - 2015
26/11/2008
आज से ठीक दस साल पहले, मुंबई में जगह-जगह आतंकवादी हमला हुआ था। ऐसा हमला जो 26 नवंबर से शुरू होकर 29 नवंबर पर खत्म हुआ। इन चार दिन तक पूरा देश मानो ठहर सा गया था... हम सभी के चिंतित मन दहले हुए थे। लेकिन उन लोगों का क्या जो उस हमले में फँसे हुए थे? ज़िंदा रहे या नहीं, पर जब तक वहाँ रहे, हर घड़ी, हर पल मौत को सामने देखते उनका समय कैसे गुज़रा होगा! साथ ही, उनके परिजनों, अपनों और मित्रों के दिलों पर क्या गुज़री होगी!
आतंकी हमले केवल किसी एक व्यक्ति को ही प्रभावित नहीं करते, एक पूरे परिवार, पूरे समाज, पूरे देश को दहशत में डाल देते हैं!
26/11 की घटना के दौरान मैंने समाचार माध्यमों से वहाँ फँसे लोगों के हालात, उनकी मनोस्थिति आदि के विषय में जो महसूस किया, उन भावनाओं, उस पीड़ा को अपनी कहानी “आतंक के साए में” के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया... पुस्तक का लोकार्पण 14 फ़रवरी, 2015 को पुस्तक मेला, प्रगति मैदान में माननीय श्री राम बहादुर राय एवं श्री उमेश उपाध्याय के कर-कमलों द्वारा हुआ था।
ऐसी स्थिति में हमारा नायक अमृत, जो कि बाहरी दुनिया से दूर, पूरी तरह से अकेला पड़ गया है अपनों के दुःख की कल्पना करके ही तड़प रहा था...
“माँ-पापा की मनःस्थिति की कल्पना करके वह बेचैन होने लगा था। जानता था कि ‘मैं यहाँ कितना भी सुरक्षित हूँ, लेकिन यहाँ के समाचार सुन-सुनकर वे दोनों बस परेशान ही होते रहेंगे। हर धमाके के साथ उन्हें मेरी मौत की ही दस्तक सुनायी देगी। मौत आए या न आए, लेकिन जब तक ये हमले बंद नहीं होंगे माँ और पापा हर पल बस मेरे लिये मरते ही रहेंगे!”
(पेज 7, आतंक के साए में)