पहली अप्रैल और पर्यावरण
Fool’s Day या फूलों का दिन?
न जाने कब से लोग इस तारीख को ‘अप्रैल-फूल’ के नाम से मनाने लगे। इस बार इस विषय पर सोशल मीडिया पर एक अच्छा सन्देश आया... ‘पहली अप्रैल को किसी को अप्रैल फूल (fool- मूर्ख) बनाने के बजाय फूल के पौधे लगाएँ!’
मानसिकता को बदलने की यह पहल सचमुच प्रशंसनीय है। एक तो अप्रैल-फूल बनाने की परंपरा का आधार ही मानवीय दृष्टि से उचित नहीं लगता, दूसरी ओर उसके स्थान पर पौधारोपण करने का विचार बहुत ही उन्नत है।
पर्यावरण संतुलन बनाये रखना हमारे ही हाथ में है और, पर्यावरण असंतुलन के गंभीर परिणाम केवल लुप्त होती प्रजातियों को नहीं भुगतनी पड़ती, हमें भी भुगतनी पड़ती है। किसी प्रजाति के विलुप्त होने के विषय पर कुछ पलों का शोक जताकर हम अपने कर्तव्यों से मुक्त हो जाते हैं। कभी विचार करने की कोशिश ही नहीं करते कि प्रकृति में लगातार आ रहा असंतुलन यदि आज कुछ पशु-पक्षियों को विलुप्त कर सकता है, तो कल हम मनुष्यों को भी इसी स्थिति पर लाकर खड़ा कर सकता है।
धन और शक्ति-सामर्थ्य अर्जित करने के प्रयास में तो हम यों मशगूल होते हैं, जैसे जीवन कभी ख़त्म ही न होगा। हम नहीं, तो हमारी संतानें हमारे द्वारा अर्जित धन-सामर्थ्य आदि का सुख भोगती रहेंगी। लेकिन प्रकृति के संरक्षण के मामले में हम इस तरह से सोच ही नहीं पाते, कि हमारे द्वारा किये गए प्रकृति के संरक्षण का सुखा हमारे बाद हमारी संतानें भी होगेंगी, और ऐसा ना करने का दुष्परिणाम भी वही भोगेंगी।
चूँकि निकट भविष्य में मानव जीवन के विलुप्त होने का कोई ख़तरा नज़र नहीं आ रहा, इसलिए हम निश्चिन्त बैठे हैं। सोच ही नहीं पाते कि प्रकृति में लगातार होने वाले असंतुलन के कारण अन्य प्राणियों की तरह हमारा जीवन भी संकट में है। समझने का प्रयास ही नहीं करते कि पर्यावरण असंतुलन के कारण जैसे धरती के अनेक प्राणी लुप्त होते जा रहे हैं, वैसे ही जल्दी ही इंसानी जीवन भी संकट में आ सकता है।
कम होते पेड़-पौधे धरती पर मौसम को कुप्रभावित करते हैं। हम दुःख जताते हैं कि अमुक प्राणी लुप्तप्राय हो रहा है, साथ ही रोते हैं कि इस बार ठीक से सर्दी नहीं पड़ी, बारिश नहीं हुई, या गर्मी बहुत पड़ी। समस्याओं पर आँसू बहाते रहने से हम समस्याओं से तो नहीं निपट सकते, इसलिए क्यों न समस्या का समाधान खोजने का प्रयास करें?
बढ़ती गर्मी के साथ हम अपने घरों, दफ़्तरों में एसी, कूलर, फ़्रिज आदि की संख्या बढ़ाते रहते हैं, जो कि इस समस्या का स्थायी समाधान बिलकुल भी नहीं है। ये हमें कुछ देर आराम तो देते हैं, लेकिन साथ ही ग्लोबल वार्मिंग को भी अधिक से अधिक बढ़ाते हैं। इस तरह से, हमारी सुख-सुविधाओं के ये साधन हमारे लिए अंततः परेशानियाँ ही बढ़ाते हैं।
जब हम ऐसी स्थिति से परिचित हैं, तो क्यों न समस्या के स्थायी समाधान के विषय में सोचें? क्यों न विचार करें कि कैसे हम प्रकृति के बिगड़ रहे संतुलन को अधिक से अधिक बचा सकते हैं? बड़ी-बड़ी बातों के लिए तो हमें सरकार/प्रशासन आदि पर निर्भर करना पड़ता है। लेकिन वृक्षारोपण जैसे छोटे से कार्य तो हम सब अपने-अपने स्तर पर कर सकते हैं।
प्राकृतिक असंतुलन की समस्या से निपटने का सीधा उपचार वृक्षारोपण/पौधारोपण है। अपने आसपास हम जितनी अधिक हरियाली लायेंगे, धरती का ताप कम करने में हम उतना ही अधिक योगदान दे सकेंगे। लेकिन साथ ही याद रखना होगा कि केवल पेड़ लगा देने से ही हमारी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। उसके पोषण का दायित्व भी हमारा ही है। उचित मात्रा में पानी, और आवश्यकतानुसार खाद देते रहने से ही वह पोषित होकर बड़ा और मज़बूत होगा और हमारे लिए पर्यावरण के असंतुलन से लड़ सकेगा।
शुरुआत अपने आसपास से ही करें। ध्यान दें, हमारे घरों के आसपास कितनी हरियाली है। सड़कों, गलियों में कितने छायादार वृक्ष हैं। जो हैं, उनमें आपस में कितनी दूरी है। जहाँ भी नज़र आये कि बहुत अधिक दूरी तक कोई वृक्ष नहीं है, वहाँ हम खुद ही एक वृक्ष की पौध लगाएँ, और उसके बड़े होने तक उसका ख़याल रखें।
यह बहुत अधिक कठिन तो नहीं? न ही आपका बहुत अधिक समय लेता है? बस, आपको दिन में मुश्किल से कुछ मिनट प्रकृति की इस आवश्यकता के लिए देना होगा, और यकीन मानिए, उसके बाद, वह स्वयं आपका ही नहीं आपकी अनेक भावी पीढ़ियों का ख्याल रखेगा।