क्विक मनी

 

पैसा कमाने की हसरत किसे नहीं होती? सभी चाहते हैं हमारे पास अधिक से अधिक पैसा हो, जिससे हम अपनी सारी आवश्यकताएँ पूरी कर सकें। लेकिन आवश्यकताओं से मन नहीं भरता तो इच्छाएँ पूरी करने लगते हैं, फिर इच्छाएँ भी कभी-कभी क़ानूनी हदें पार करने लगती हैं, और कभी नैतिकता की मर्यादाएँ बिसरने लगती हैं।

नैतिकता आज के दौर में अधिक महत्वपूर्ण नहीं। वो तो आपके अंतर्मन को परेशान करती हैं, और यदि आपने अपने अंतर्मन को आराम से मार डाला है, झूठ को सच और गलत को सही साबित कर डाला है, तो नैतिकता जैसी बातें आपके आसपास भी नहीं फटकेंगी। लेकिन क़ानून के साथ ऐसा नहीं है। क़ानून को चकमा देना तो तभी संभव है जब आप इतने शातिर हों कि पकड़े जाने से पहले “बहुत बड़े आदमी” बन जाएँ। अगर ऐसा नहीं हुआ और शुरूआती खेलों में ही यदि आप पकड़े गए तो आपका बच पाना बहुत ही कठिन होगा।

प्रतीत होता है जैसे आज मैं गबन करने की ट्रेनिंग देने की कोशिश कर रही हूँ। ऐसा बिलकुल नहीं है। मैं तो बस समाचार की सुर्खियों में आई दो अलग-अलग घटनाओं का सामाजिक मूल्यांकन करने की कोशिश कर रही हूँ।

हाल ही में दिल्ली में एक ऐसा वीभत्स केस सामने आया जिसमें सिविल सेवा की तैयारी कर रहे एक युवा ने अपने पड़ोसी के सात साल के बच्चे का न केवल अपहरण किया, बल्कि उसकी हत्या भी कर दी! और तो और, पुलिस से बचने के लिए उसने बच्चे का शरीर अपने ही घर में बंद करके रखा और बदबू से बचने के लिए बहुत सारे परफ़्यूम का उपयोग करता रहा। बताया गया कि बच्चे की फ़िरौती में मिले पैसे से वह एक एसयूवी गाड़ी खरीदना चाहता था। एक गाड़ी के लिए एक छोटे से बच्चे की जान ले ली? इतना लालच किसे हो सकता है? वह बच्चा तो उस व्यक्ति के आसपास खेलता रहा होगा... लालच ने इतना अँधा कैसे बना दिया कि बच्चे की मासूमियत से उसे प्यार नहीं हो सका?

संभव है, कि इस केस में अपहरण और हत्या का मकसद कुछ और रहा हो। लेकिन बच्चों की ट्रेफिकिंग से जुड़े लोग तो केवल पैसे की लालच में ही बच्चों की मासूमियत को बिसरा देते हैं!

विचारने पर लगता है, ऐसे लोग इस तरह के काण्ड करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते जिन्हें लगता है बड़ी गाड़ी और बड़े मकान वालों की ही समाज में इज्ज़त है... जिन्हें लगता है, येन-केन प्रकारेण इस तरह के वैभव जुटा लेने से लोग की नज़रों में उनके लिए सम्मान बढ़ जाएगा... जिन्हें लगता है, समाज में ईमानदारी का कोई सम्मान नहीं है, केवल आपके धन का सम्मान है... और, जिन्हें लगता है, देश में क़ानून व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नहीं है।

सामान्य परिवारों के युवाओं में ऐसे विचार कहाँ से आते हैं? वहीं से, जब वे देखते हैं कि लाखों-करोड़ों के रुपयों का हेरफेर करने वाले अनेक बड़े-बड़े व्यापारियों का क़ानून कुछ नहीं बिगाड़ पाया और वे बड़े आराम से देश छोड़कर दूसरे देश में जाकर बस गए... जहाँ हमारा क़ानून कुछ कर ही नहीं सकता!

हाल ही में, हीरे के मशहूर व्यापारी के 11 हज़ार करोड़ का ऋण न चुकाने का मामला प्रकाश में आया। यों तो दोनों घटनाओं का आपस में कोई भी सम्बन्ध नहीं है। लेकिन यदि सामाजिक रूप से देखा जाए तो दोनों का सम्बन्ध है। नीरव मोदी जैसे तमाम धनी और सम्मानित वर्ग के लोग जब क़ानून व्यवस्था को मुँह चिढ़ाते हैं तो समाज के अनेक हताश-कुंठित लोग जल्दी-पैसा कमाने की कामना के साथ ग़लत रास्ते पर आसानी से चल पड़ते हैं।

हताशा केवल इसलिए नहीं कि वे धन कमा नहीं पा रहे, कई बार हताशा इसलिए भी होती है क्योंकि ईमानदारी के साथ अपने घर-परिवार चलाने वाले लोगों की तरक्की ऐसे लोगों को छोटी और कम महसूस होती है, और बेईमानी से क्विक-मनी बना लेने वालों का वैभव उन्हें आकर्षित करता है।

हम नैतिकता की बातें चाहे कितनी भी कर लें, लेकिन आप कहीं भी निकल जाईये, समाज में ईमानदारी की चमक धूमिल ही दिखाई देती है। आखिर किसी अनजान व्यक्ति को कैसे पता चले कि आप ईमानदार हैं? या आप बहुत पढ़े-लिखे हैं? या आप बहुत अच्छे इंसान हैं? अनजान लोगों के बीच तो आपका वैभव ही सामने आता है। आपने कितने महँगे कपड़े-जूते या घड़ी पहनी है, या आप कितनी महँगी गाड़ी से उतरे हैं।

समाज की इस मानसिकता के लिए हम किसे दोषी दे सकते हैं?

समाज में कौन आता है?

खुद हम-आप मिलकर ही तो समाज बनाते हैं।

क्या हमें आत्म-अवलोकन करने की ज़रुरत नहीं है?

क्या हमें विचार करने की ज़रुरत नहीं है कि हम किसी व्यक्ति का आंकलन किस आधार पर करते हैं?

क्या हमें यह विचार करने की ज़रुरत नहीं है कि प्रथम दृष्टि में हम किसी व्यक्ति का आंकलन करते ही क्यों है?

और जिन्हें जानते हैं, उनका आंकलन उनके वैभव के आधार पर क्यों करते हैं?

हाँलाकि किसी की कुंठा का इलाज कोई दूसरा क्या करेगा? ये तो अपने विचारों से ही उपजती है। लेकिन समाज का सकारात्मक रवैया इस कुंठा को युवाओं के बीच संक्रामक होने से बचा सकता है।