कलाकार कभी अकेला नहीं होता
कभी श्वेत-श्याम तस्वीरें उकेरता…
तो कभी तूलिकाओं के रंग बिखेरता
कहीं सुरों को साज़ में ढालता…
कभी घुंघरुओं की रुनझुन में ख़ुद खो जाता
अपने बनाए उस कल्पना लोक में
अपने स्वप्निल किरदारों के साथ जीता है
पर वह कभी अकेला नहीं होता है।
कभी मुस्काता, कभी विचारों में डूब जाता
कभी हँस देता, तो कभी बिलख भी पड़ता है
कुछ भी करता, लेकिन कभी अकेला नहीं होता…
वैसे ही जैसे, कलाकार कभी मरता भी नहीं है!
उन उकेरी तस्वीरों में, उभरी-गहरी नक्काशियों में
कहीं न कहीं साँसें लेता रहता है।
संगीत में पिरोये अपने हर सुर, हर ताल में
गीतों में ढली उन मधुरिम तान में,
अपने बनाए एक-एक किरदार में,
कल्पना से सजाए अपने मनभावन संसार में
कभी हंसता, तो कभी सिसकता रहता है
कभी रोता, कभी खिलखिलाता रहता है
कहीं, किसी कोने में हर पल हौले-हौले मुस्काता रहता है…
कलाकार हमेशा जीता रहता है…