इंसानों की दुनिया – जानवरों की दुनिया

किसे प्यार करें?

इंसानों की दुनिया

बाहर निकलती हूँ, तो सड़क पर छोटे-मोटे सामान बेच रहे बच्चों से कुछ न कुछ खरीद लेती हूँ। साथ ही कभी-कभी उनका हालचाल भी ले लेती हूँ।

एक बार कनॉट प्लेस में फ़ोल्डिंग पंखे बेचने वाले एक बच्चे से मैंने पंखे लेते समय पूछ लिया, ‘घर में कौन-कौन है? पढ़ाई भी करते हो या नहीं?’ वगैरह-वगैरह।

कुछ देर बाद संयोग से आगे बढ़ने पर देखा वह बच्चा अपने कुछ हमउम्र और कुछ बड़े साथियों के साथ बहुत ही उच्चकोटि की गालियों का इस्तेमाल करते हुए बता रहा था... ‘कह रही थी पढ़ाई करते हो या नहीं!’

कुत्तों की दुनिया

कॉलोनी में बहुत से कुत्तों ने डेरा डाल रखा है। बहुत से लोगों की तरह हम भी उन्हें थोड़ा-बहुत खाना खिला देते हैं।

इस घर में आये अभी हमें दो-तीन महीने ही हुए थे। एक दिन मैं पास की मदर डेयरी से दूध लाने निकली, और देखते-देखते तीन-चार कुत्ते मुझे चारों ओर से घेरकर चलने लगे। मुझे डर लगता रहा... मदर डेयरी के पास उनका इलाका ख़तम और दूसरे कुत्तों का इलाका शुरू हो जाता है। मैं डरती रही उनके लिए, कि अब मेरे कारण उनकी लड़ाई होगी, लेकिन वे फिर भी गए। और जब उस इलाके के कुत्ते ने उन्हें देखकर भौंका, तो वे मेरे पीछे छुपे!

अब मेरे लिए बारी थी कि खुद के लिए डरूं! कुत्तों की लड़ाई में बीच-बचाव मैं कैसे कर सकती थी?

खैर, जल्दी-जल्दी सामान लिया, और घर की चली... किसी तरह उनकी लड़ाई से बचाव हुआ।

जबकि, इतना प्यार दिखाने वाले कुत्तों के साथ सच्चाई यह है कि मैं अपने हाथ से कुत्तों को खाना नहीं खिलाती... खाना देते समय वे प्यार से आपके ऊपर कूदते हैं, और इससे मुझे डर लगता है। लेकिन फिर भी वे जानते हैं, कि यह उसी घर की सदस्या है जहां से हमें खाना मिलता है।

बिल्लों-बिल्लियों की दुनिया

लेखन में व्यस्त थी... आगे के दृश्य सोचते-सोचते मन कहीं और विचरण करने लगा
एकाएक किसी की याद आई और चेहरा खिल गया, मुस्कराहट फैल गयी।

और खुद पर ही हँस पड़ी... कि इस प्यार को मैं क्या नाम दूँ?

'चौधरी' के साथ घटी एक घटना याद आ गयी!

'चौधरी'... वो एक मोटू सा बिल्ला है, जिससे कॉलोनी के अधिकतर छोटे बिल्ली-बिल्लियाँ शायद डरते हैं... और जो शेर की तरह रास्ते पर चलता है!

मोटू इतना कि खाने के लिए झुकते समय पीछे के पैरों को फैला देता है!

और जो बहुत मासूमियत से हमारे घर के बाहर आकर बैठता है, और खाना देने पर पीछे के पाँव फैलाकर खाता है।

एक दिन हम लोग जब रात के भोजन के बाद कॉलोनी में टहल रहे थे, तो रास्ते में मिल गया। हम दोनों के एक दूसरे को देखा, और मैंने उसे कहा, घर जा, खाना रखा है।

लेकिन वह तो वहीं खाना-खाने की पोज़ीशन में बैठ गया...

जैसे कह रहा हो, यहीं दे दो... उतनी दूर कहाँ जाऊँगा?

***

क्या कहूँ? स्वभाव तो सभी का अलग-अलग ही होता है?

लेकिन यही कारण है, कि अक्सर इंसान का इंसान पर से ही भरोसा उठता है!