अंतस की आवाज़
- सौरभ द्विवेदी
सामाजिक परिवर्तन और मूल्यचेतना के प्रति संवेदना की आवाज़ है सौरभ द्विवेदी के ‘अंतस की आवाज़’। काव्य संकलन एक ओर प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता दर्शाता है तो दूसरी ओर आध्यात्म के रहस्यों को भी परखने का प्रयास करता है। चिन्तन का स्तर हतप्रभ करता है कि एक युवा कवि इतने गूढ़ तत्वों का अन्वेषण कर सकता है!
कवि की सहज नैसर्गिक भावनाएँ अंतस में निश्छल भाव से प्रकट होती हैं।
काव्यात्मक अभिव्यक्तियाँ आमतौर पर भावनाओं की अभिव्यक्ति होती हैं, जो कवि के हृदय से स्फुटित होकर शब्दों में गुँथ जाती हैं और सहृदय पाठक के अंतर्मन को अभिसिंचित करती हैं। अंतस की आवाज़ ऐसी ही काव्य-रचनाओं का संकलन है। कवि के अंतस की आवाज़ पाठकों के अन्तस तक सहज प्रवाह की तरह पहुँचती है।
पहली ही रचना विचार करने को बाध्य कर देती है...
‘तन तो वैसा ही रहता है न
ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत जिस्म
बदसूरत सा भी
पर खेल मन का होता है...’
किस सहजता से प्रेम को परिभाषित कर दिल को छू जाती है! वास्तव में, सोच में पड़ जाता है मन, कि प्रेम क्या हर किसी से हो जाता है? या फिर, कहीं, किसी ओर अबाध सा खिंचा चला जाता है।
ज्यों-ज्यों रचनाओं का यह कारवाँ आगे बढ़ता है, अंतस की एक-एक परतें खुलती हैं, और कभी दिल को झकझोरतीं तो कभी अंतस को टटोलती हैं।
प्रेमी हृदय की व्याकुलता अपनी सी लगती है ‘अग्नि परीक्षा’ में, जब कवि कहते हैं,
‘क्योंकि तुम मेरी हर बार परीक्षा लेती हो...
...स्वयं को बैठा हुआ पाता हूँ
एक प्रेम अगन में....
...कि बस
तुम एक बार तो आत्मसात कर लो!’
गहराते प्रेमपूर्ण अहसास में डूबने लगता है यह मन, कि ‘अर्द्धनारीश्वर’ एक बार दिमाग को भी झकझोरता है। प्रेमी हृदय के लिए काल-देश की दूरी कुछ नहीं, वह तो दूर रहकर भी एकात्मकता का अनुभव देता है। तभी कवि का अंतस पुकार उठता है, ‘मैं कभी अकेला नहीं होता, हाँ अर्द्धनारीश्वर, हाँ नीलकंठ कह सकती हो!’
कविता को कितनी बखूबी उतारते हैं, जब कवि ‘आच्छादन’ में कहते हैं... “एक कविता का जन्म आह से होता है...”
सत्य ही है। जब दर्द छलकने लगता है तो शब्दों में गुँथ यह कविता बन जाता है।
प्रेमपूर्ण अहसासों का यह संकलन एक बार सोचने के लिए मजबूर कर देता है कि यदि प्रेम का ऐसा ही भाव संसार में चारों ओर व्याप्त हो जाए तो यह संसार कितना सुन्दर हो! एक-एक रचना मानो भावनाओं और अनुभूतियों की मोतियों में पिरोई हुई हों... जितना पढ़ते हैं, उन्हीं में डूबते जाते हैं।
कवि के अनुसार यह उनकी प्रथम काव्य-कृति है। पहली ही कृति में भाषा और अभिव्यक्तियों की इतनी परिपक्वता हतप्रभ करती है। भावनाओं से ओतप्रोत और अंतस के रहस्यों में विचरती इस अनुपम रचना के लिए सौरभ द्विवेदी बधाई के पात्र हैं।
शुभकामनाएँ!
अंतस की आवाज को इतनी गहराई और सूक्ष्मता से शब्द प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार