आतंक से मुक्ति जारी…

अभिनंदन विंगकमांडर!

‘आज रह-रहकर आँखें फिर से छलकी जाती हैं!

ये दुःख के नहीं, बहुत सारी ख़ुशी, और गर्व के आँसू हैं!

इतना तो कितने बच्चे अपने माता-पिता को नहीं कर पाते,

जितना अकेले आपने पूरे देश को गौरवांवित किया है, अभिनंदन!

बारम्बार अभिनंदन!

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अभी कुछ समय में विंगकमांडर भारत की धरती पर वापस क़दम रखेंगे... पूरा देश उत्साहित है! लोगों ने अभी से मिठाइयाँ बाँटनी शुरू कर दीं, वाघा बॉर्डर पर लोग झूम रहे हैं, ढोल-ताशे बजा रहे हैं, भांगड़ा कर रहे हैं!

आज के हालातों में मन रह-रहकर तेज़ी से पीछे जाकर लौट-लौट आता है...

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दस साल बीत गए, जब मुंबई में ताज समेत कई जगह आतंकी हमला हुआ था, और 72 घंटे तक देश सहमा हुआ था कि आगे क्या!

आगे हुआ ये कि हमारे बहादुर सिपाहियों ने कई आतंकियों को मार गिराया, और एक आतंकवादी ज़िंदा भी पकड़ लिया! उसकी बदौलत ख़ुलासा भी हो गया कि इस हमले के पीछे भी पाकिस्तान का ही हाथ था! लेकिन उसके बाद क्या हुआ? उस आतंकवादी को क़रीब पाँच-छः साल पाला गया। कहते हैं, उसे जेल में बिरयानी खिलाई जाती, और मानवाधिकार का पूरा ध्यान रखा जाता!

सोचिए, हमारे देश में आतंकियों के मानवाधिकार का पूरा ध्यान रखा गया... लेकिन जिन मानवों से उन्होंने जीने का अधिकार ही छीन लिया उनके बारे में कभी किसी ‘मानवता के पुजारी’ ने कैसे न सोचा?

ग़लत को बढ़ावा देंगे, तो वह आपका ही नाश करेगा ही!

हुआ भी यही... आतंकी घटनाएँ बढ़ती ही रहीं, और हम देशवासी और भी अधिक आतंकित होते चले गए! कभी दीपावली के दिन सीरियल ब्लास्ट होते, और देश ऐसा दहलता कि त्यौहार ही भूल जाता! तो कभी दशहरे, होली पर तो कभी बस यूँ ही.... हमले बढ़ते जाते, और हम हदसते ही जाते!

हालात कुछ ऐसे हो चुके थे कि दिल्ली शहर से सारे कूड़ेदान ही हटा दिए गए थे, क्योंकि आए दिन कोई कूड़ेदान में बम रखा जाता। और हम आम लोग, बस तिलमिलाकर रह जाते... समस्या से निपटने का ऐसा भी इलाज होता है क्या?

न हम ख़ुद आतंकवाद का समाधान खोज पाते, न इसका व्यापक विरोध कर पाते, और न ही ऐसा करने के लिए विश्व का सपोर्ट जुटा पाते। जबकि पाकिस्तान इधर भारत में आंतकवाद बढ़ाता रहता और उधर पूरे विश्व में भारत को ही झुठलाता रहता!

हम शांति पसंद बने रहे... मनोबल तोड़-ताड़ पर हदसे ही बैठे रहे।

आश्चर्य ही होता है, कि कैसे आपके घर में दहशत फैलाने वालों की ओर कुछ “अति-बुद्धिमान” लोग हमदर्दी जता सकते हैं!

2014 में सरकार बदली... देश भर में तो आतंकी घटनाएँ काफ़ी कम हो गईं, लेकिन कश्मीर फिर भी उबलता ही रहा... सीमा पर जवानों के हताहत होने की भी ख़बरें आतीं, और आतंकी हमलों की भी।

और जब भी जवाबी कार्यवाही की जाती, तो कहीं किसी और देश से नहीं, हमारे ही देश के लोग सरकार से हिसाब माँगते... एक ओर सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माँगते, और दूसरी ओर विवरण सार्वजनिक करने पर निंदा करते रहते!

कभी सवाल उठाते कि ‘बेचारे आतंकियों’ को क्यों मारा, तो कभी माखौल बनाते कि कब तक “कड़ी-निंदा” करेंगे?

जब नवाज़ शरीफ़ को शाल भेंट की गई... तब भी लोगों ने बहुतेरे सवाल उठाए... कभी 56” का व्यंग्य कसा, तो कभी कुछ और!

ज़ाहिर है, किसी समझदार इंसान को युद्ध नहीं चाहिए! महाभारत में भी श्रीकृष्ण
धृतराष्ट्र के पास शांति प्रस्ताव लेकर गए थे। हाँलाकि, वह पहले ही जता चुके थे कि
दुर्योधन जिस तरह का है, वह शांति की भाषा समझेगा ही नहीं, और युद्ध तो होकर ही रहेगा... फिर भी, उन्होंने भी एक अंतिम प्रयास तो किया ही था!

युद्ध हमें नहीं चाहिए... हिन्दुस्तानियों को युद्ध की कभी दरकार रही ही नहीं... शांति-प्रिय ही नहीं, हम विकास-प्रिय लोग भी हैं... देश की तरक्की चाहते हैं, युवाओं को ख़ुशहाल, प्रगतिशील देखना चाहते हैं।

लेकिन फिर सवाल उठता है, किस कीमत पर? कमज़ोर, डरे, सहमे लोग तरक्की करेंगे? या फिर, एक-दूसरे पर अपना आक्रोश निकालकर अपना ही नाश करेंगे?

पुलवामा काण्ड के बाद, एक बार फिर सवाल उठा... हमारे जवानों को वे यूँ ही मारते रहेंगे, और हम कोई जवाब भी न देंगे?

क्या इस तरह हम आतंकियों को ही प्रोत्साहित नहीं करते रहेंगे?

क्या हम अपने देशवासियों को आतंकित, अपने जवानों को हतोत्साहित नहीं करते
रहेंगे?

युद्ध हम नहीं चाहते, जानते हैं, युद्ध हमसे भी बलिदान माँगेगा ही!

लेकिन बलिदान तो हम युद्ध किए बिना भी लगातार देते ही जा रहे हैं! सीआरपीऍफ़ के 42 जवान उस समय कौन सा युद्ध लड़ रहे थे, जिसमें उन्हें एक बार में ही मार दिया गया? इससे पहले भी न जाने कितने जवानों, न जाने कितने आम-नागरिकों को आतंकी मारते रहे, वे सब कौन सा युद्ध कर रहे थे?

देखा जाए, तो पाकिस्तान से भी हमारा कोई युद्ध नहीं... हमारा युद्ध तो आतंक से
है! ये बात अलग है, कि पाकिस्तान ही इन आतंकियों को पनाह देता आया है, ख़ुद ही इस युद्ध में कूद पड़ता है।

आज भी, एक ओर “पीस जेस्चर” के तहत विंगकमांडर अभिनंदन को रिहा करने की बात करते हैं, और दूसरी ओर सीमा पर लगातार सीज़फ़ायर किए चले जा रहे हैं!

अगर आतंकी अब तक हमारी विनम्र भाषा समझ नहीं सके, हमारी शांति-प्रियता को
हमारी कमज़ोरी समझते आए, तो क्या उन्हें मुँह-तोड़ जवाब देने के लिए उठाए गए क़दम सही नहीं?

आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमेरिका जैसे अधिकतर देश भारत का साथ दे रहे हैं यही नहीं, पाकिस्तान को लगातार बढ़ावा देने वाला चीन भी अब पीछे हट गया है! 'अक्लमंद दुश्मन' इस चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहता!

अभी हमने पाकिस्तान को जवाब देना शुरू ही किया था कि विंगकमांडर अभिनंदन पाकिस्तान की गिरफ़्त में आ गए! देश घबरा गया... उनकी पहली वीडियो और तस्वीरें देख अधिकतर लोग दहल गए... सौरभ कालिया को जो लोग नहीं भूले, उनके लिए ऐसे घबराना स्वाभाविक ही था!

लेकिन साथ ही, आतंकियों के साथ सद्भाव रखने वालों को एक बार फिर मौका मिल गया... बहुतों ने छाती पीटनी शुरू कर दी, तो बहुतेरे आलोचना पर उतर आए!

क्या हम नहीं जानते कि यदि युद्ध का माहौल बना है, तो ये सब भी होगा ही!

लेकिन अचरज ही नहीं, नाज़ भी हुआ विंगकमांडर की उस वीडियो को देख, जिसमें वह हर सवाल पर पूरे आत्मविश्वास के साथ, मुस्कुराकर जवाब दे रहे हैं... ‘I’m not
supposed to tell you…”

पहली वीडियो में हम सबने देखा ही था कि उनके साथ कैसा सुलूक किया गया था। ऐसे दुश्मनों के बीच, उनकी मुस्कुराती तस्वीर ने पहले ढाँढस बँधाया... फिर आश्चर्य होना शुरू हुआ, और फिर, वीडियो पूरी होते-होते मन गर्व से भर गया!

इतने दबाव में इतने कूल! कितना संयम, कितनी समझदारी... रियल हीरो...

 

‘आज रह-रहकर आँखें फिर से छलकी जाती हैं!

ये दुःख के नहीं, बहुत सारी ख़ुशी, और गर्व के आँसू हैं!

इतना तो कितने बच्चे अपने माता-पिता को नहीं कर पाते,

जितना अकेले आपने पूरे देश को गौरवांवित किया है, अभिनंदन!

बारम्बार अभिनंदन!

 

दस साल पहले मुंबई हमले और उसके बाद लगातार आतंकवाद से मन जिस तरह से दहले हुए थे, उस समय भी आँखों में आँसू थे... लेकिन वे थे लाचारी के, दुःख के आँसू... पूरा देश आतंकित जी रहा था... लेकिन आतंकवादियों को ‘जी-जी’ कहकर संबोधित किया जा रहा था! उसी माहौल में मेरी कहानी ‘आतंक के साए में’ का बीजारोपण हुआ था।

आज, आतंक के ख़िलाफ़ जिस तरह से पूरा भारत कमर कसकर तैयार खड़ा हुआ है, और जैसे पूरा विश्व हमारे साथ खड़ा हुआ है... ऐसे गौरव के क्षण वर्तमान में कहाँ देखने को मिलते हैं! गौरव गाथा तो अब तक किस्से-कहानियों तक सीमित रह गई थी...

अब मन बस यही अपेक्षा कर रहा है... भारत सहित पूरा विश्व कुछ इस तरह से आतंकवाद को उखाड़ फेंके कि इस बार मैं... बल्कि, मैं ही क्यों, कोई भी ‘आतंक से शांति तक’ कहानी लिखे... कहानी नहीं, गौरव-गाथा लिख सके!