अंडमान यात्रा वृत्तांत – भाग दो

अंडमान में कुछ दिन...

 

अपनी अंडमान यात्रा के दूसरे दिन हम दो-तीन जगह गए, जिनमें सबसे पहले सेलुलर जेल के ठीक सामने बने रॉस आइलैंड पर जाना हुआ... जो मुझे सबसे आकर्षक जगह भी लगी। इस छोटे से टापू का परिचय हमें सेलुलर जेल में ही मिल चुका था।

सेलुलर जेल को एक छोटी सी पहाड़ी को काटकर बनाया गया था, और वहाँ से मिली अतिरिक्त मिट्टी का उपयोग करके रॉस आइलैंड में ब्रिटिश अधिकारियों के रहने की, उनके आमोद-प्रमोद की भरपूर व्यवस्था की गई थी।

सेलुलर जेल में जितनी कष्टकारी परिस्थितियाँ नज़र आयीं थीं, यहाँ रॉस आइलैंड में उतना ही वैभव और विलासिता नज़र आया। समुद्र तट पर सौ साल पहले बना विशाल स्वीमिंग पूल एक बार दिल को जलाता है... हमारे देश के धन से एक ओर वे अपने लिए मौज-मस्ती के साधन जुटा रहे थे, और दूसरी ओर हमारे ही लोगों को खाने-पीने तक के लिए तरसा रहे थे। बंदियों को पीने के लिए साफ़ पानी तक न देकर उनके साथ जानवरों से भी ख़राब व्यवहार किया जा रहा था।

इन सबसे भी अधिक विचित्र लगता है इस आइलैंड में अंग्रेज़ों की मित्रता के मज़े लेते कुछ धनाढ्य भारतीय, जिनकी फ़ोटो सेलुलर जेल के संग्रहालय में संजोयी हुई हैं! ताज्जुब होता है, क्या इनमें ज़रा भी आत्म-सम्मान न था?

खैर, रॉस आइलैंड पर आते हैं..

पोर्ट ब्लेयर से लगभग तीन किमी पर समुद्र में ये छोटा सा टापू प्राकृतिक सुन्दरता का आकर्षक केंद्र है। बोट से यहाँ पहुँचने पर यहाँ-वहाँ इत्मीनान से घूमते ख़ूबसूरत हिरणों (चीतल) ने बरबस मन मोह लिया। हममें से अधिकाँश को ऐसे नज़ारे देखना सुलभ नहीं होता... इसीलिए, पहले से मालूम होने के बावजूद इस दृश्य को देख मैं चमत्कृत रह गई।

उनकी मौजूदगी ही नहीं उनकी दोस्ती भी चमत्कृत कर रही थी... वे हमसे डरते नहीं। हमारे आसपास ही वे आराम से घूमते रहते हैं... प्राकृतिक तालमेल की अनुपम मिसाल पेश करते हुए!

यहाँ केवल हिरणों ने ही नहीं, मोर, ख़रगोश और गिलहरियों ने भी यहाँ मंत्रमुग्ध कर लिया। ये सब हमें देखकर भागते नहीं, और थोड़ी ही कोशिश ये दोस्ती भी कर लेते हैं। हाँ, हमें भी कुछ संयम बरतने की ज़रुरत होती है। शोर-गुल और तेज़ आवाज़ों से पशु-पक्षी घबराते हैं। इसलिए ज़रुरत होती है कि केवल रॉस आइलैंड में ही नहीं, कहीं भी हों, इनके साथ तालमेल में जीने के लिए यथा-संभव तेज़ आवाज़ें न करें।

अब तक हम समझते रहे ख़रगोश आसानी से हाथ नहीं आते, लेकिन यहाँ तो हमारी दोस्ती खरगोशों से भी हो गई। और तो और, बाहर निकलने से पहले एक प्यारे से ख़रगोश ने ख़ुद ही आगे बढ़कर हमसे दोस्ती की। मेरा बेटा उसके लिए अपने बैग में कुछ बिस्किट ढूँढने लगा तो वह समझ गया कि यहाँ से कुछ खाने को मिलने वाला है। फिर क्या था! खाना पाने की उम्मीद में वह बेटे के हाथ में अपना हाथ भी दे दिया, उसके सामने दो पैरों पर भी खड़ा हो गया, फ़ोटो भी क्लिक करवायीं, दो और लड़कों को अपनी फ़ोटो खींचने दी, और अंत में, बेटे के हाथ से बिस्किट लेकर थोड़ी दूर जाकर मज़े से खाने लगा।

कुछ ही दूर से मोरों को भी देखने का मौका मिला। हम जानते थे कि नज़दीक जाने पर मोर डरकर उड़ जायेंगे, इसलिए ऐसी कोशिश नहीं की। लेकिन बाद में उस मिलनसार ख़रगोश को देखने पर महसूस हुआ, क्या पता, थोड़ी कोशिश करने पर मोर भी दोस्ती कर ही लेते। लेकिन उसका अफ़सोस नहीं... उनकी दुनिया में अधिक हस्तक्षेप भी उचित नहीं।

 

यहाँ, रॉस आइलैंड पर कुछ पुराने भवनों के उजड़े अवशेषों पर पुराने पीपल की जड़ें लिपटकर जाल सा बना चुकी हैं। यह दृश्य देखकर ऐसा लगा मानो मानव-निर्माण पर प्रकृति उपहास कर रही हो। टापू पर उभरे करीब सौ साल पुराने कुछ खंडहर और उनपर सैकड़ों साल पुराने वृक्षों की जड़ें...

द्वीप में प्रकृति अपने जिस रूप में है, उसी में सदा रहे, यही कामना है... आशा है, प्रशासन यहाँ प्रकृति के साथ आगे कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा, और सबकुछ जैसा है, उसी रूप में संरक्षित करते रहेंगे।

पोर्ट ब्लेयर के निकट ही वाइपर आइलैंड भी है, जहाँ सेलुलर जेल बनाने से पहले देश के क्रांतिकारियों को फाँसी दी जाती थी।

 

रॉस आइलैंड से निकलकर हम बोट से ही एक दूसरे द्वीप नॉर्थ-बे पर गए जहाँ तरह-तरह के वाटर-स्पोर्ट्स की सुविधाएँ थीं। मैं अकेली बैठी, वाटर-स्पोर्ट्स का आनन्द लेने वालों को देख ही खुश होती रही।

 

 

 

 

 

अगले दिन हम शिप से हैवलॉक गए। प्रकृति की अद्भुत सुन्दरता से भरपूर हैवलॉक के हरे-नीले, पारदर्शी समुद्री पानी को देख हम सम्मोहित से रह गए। यों तो ये जगह अपने स्वादिष्ट समुद्री-भोजन (सी-फ़ूड) के लिए मशहूर है। लेकिन काफ़ी बेहतरीन शाकाहारी भोजन भी उपलब्ध हैं, और कुछ रेस्टोरेंट में केवल शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है।

 

 

पोर्ट ब्लेयर के विपरीत इस जगह में कुछ ग्रामीण परिवेश महसूस हुआ। यहाँ के शांत, सुरम्य वातावरण में घंटों घूमते रहने पर भी थकान महसूस नहीं होती। लेकिन लगातार निर्माण हो रहा है... नए होटल/रिजॉर्ट बन रहे हैं... संभव है, कुछ वर्षों में यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता पर मानव-निर्माण हावी हो जाए। बस, उम्मीद है, प्रशासन इस बात का पूरा ख़याल रखेगा कि निर्माण कार्यों से प्रकृति को अधिक नुकसान न पहुँचे।

अपनी यात्रा के अंतिम दिन हमने पोर्ट ब्लेयर स्थित नेवी द्वारा संचालित समुद्रिका संग्रहालय देखा। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के जीवन की संक्षिप्त और मनमोहक झलकी हमें यहाँ काँच में बंद नज़र आती है। समुद्री जीवन हो या आदिवासियों का जीवन, इस एक जगह पर हमें उसका भरपूर परिचय मिलता है।

द्वीप-समूह में आज भी प्राकृतिक संपदा को यथा-संभव संरक्षित किया गया है। तरह-तरह के रंग-बिरंगे पक्षी, लगभग हर-तरह के घरेलू पशु, वृक्षों की असीमित किस्में और तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों के पौधे ही नहीं, बेमिसाल जलीय जीवन का भी आवास है, यह द्वीप-समूह, जो अपनी पूरी विविधता के साथ हमारे दिल मोह लेता है।

और, वातावरण इतना शांत और मनोहारी कि भाग-दौड़ की ज़िन्दगी से थकान के बाद किसी का भी दिल वहीं बस जाने को करे।

अंत में फिर से यही कहूँगी... कुछ अनुभवों को तस्वीरों या शब्दों में समेटना संभव नहीं... वे बस छवि बन चित्त में अंकित रह जाते हैं!

2 thoughts on “अंडमान यात्रा वृत्तांत – भाग दो”

  1. पढ़ते-पढ़ते सचमुच अंडमान पहुंच गए, उस पर तस्वीरें भी बिल्कुल वैसा ही एहसास करा रही है जैसा आपने परोसा है। बहुत खूब।

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